श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 7: द्रोण-पुत्र को दण्ड  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  1.7.19 
 
 
यदाशरणमात्मानमैक्षत श्रान्तवाजिनम् ।
अस्त्रं ब्रह्मशिरो मेने आत्मत्राणं द्विजात्मज: ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  जब ब्राह्मण पुत्र (अश्वत्थामा) ने देखा कि उसके घोड़े थक चुके हैं, तो उसने मन ही मन सोचा कि अब उसके पास अपने बचाव का कोई अंतिम विकल्प नहीं बचा है, सिवाय अपने आखिरी दिव्यास्त्र, ब्रह्मास्त्र (परमाणु हथियार) के उपयोग के।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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