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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 1: सृष्टि
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अध्याय 7: द्रोण-पुत्र को दण्ड
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श्लोक 16
श्लोक
1.7.16
तदा शुचस्ते प्रमृजामि भद्रे
यद्ब्रह्मबन्धो: शिर आततायिन: ।
गाण्डीवमुक्तैर्विशिखैरुपाहरे
त्वाक्रम्य यत्स्नास्यसि दग्धपुत्रा ॥ १६ ॥
अनुवाद
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हे देवी, जब मैं अपने गाण्डीव धनुष से छोड़े गये तीरों से उस ब्राह्मण का सर काट कर तुम्हें भेंट करूँगा, तभी मैं तुम्हारी आँखों से आँसू पोछूँगा और तुम्हें तसल्ली दूँगा। तब तुम अपने पुत्रों के शरीरों का दाह करने के बाद उसके सिर पर खड़ी होकर स्नान करना।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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