श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 6: नारद तथा व्यासदेव का संवाद  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  1.6.7 
 
 
सास्वतन्त्रा न कल्पासीद्योगक्षेमं ममेच्छती ।
ईशस्य हि वशे लोको योषा दारुमयी यथा ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  वह मेरा लालन-पालन अच्छी तरह करना चाहती थी, परंतु पराधीन होने के कारण वह मेरे लिए कुछ भी नहीं कर पाई। संसार परमेश्वर के पूर्ण नियंत्रण में है, अतएव हर व्यक्ति कठपुतली नचानेवाले के हाथ में किसी लकड़ी की गुड़िया के समान है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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