प्राक्कल्पविषयामेतां स्मृतिं ते मुनिसत्तम ।
न ह्येष व्यवधात्काल एष सर्वनिराकृति: ॥ ४ ॥
अनुवाद
हे प्रकाण्ड ऋषिवर, समय अपने अनुकूल होने पर ही हर वस्तु का नाश कर डालता है, तो कैसे ये विषय जो ब्रह्मा जी के इस दिन के बहुत पहले हुआ था, समय के प्रभाव से रहित अपनी मूल स्थिति में ही आपकी स्मृति में ऐसा तरोताजा बना हुआ है?