अन्तर्बहिश्च लोकांस्त्रीन् पर्येम्यस्कन्दितव्रत: ।
अनुग्रहान्महाविष्णोरविघातगति: क्वचित् ॥ ३१ ॥
अनुवाद
तब से विष्णु की कृपा से मैं दिव्य जगत और भौतिक जगत में कहीं भी बिना किसी रोक-टोक के घूमता हूं। ऐसा इसलिए क्योंकि मैं भगवान की निरंतर भक्ति में लीन हूं।