ध्यायतश्चरणाम्भोजं भावनिर्जितचेतसा ।
औत्कण्ठ्याश्रुकलाक्षस्य हृद्यासीन्मे शनैर्हरि: ॥ १६ ॥
अनुवाद
जैसे ही मैंने अपने मन को दिव्य प्रेम में लीन करके भगवान के चरणकमलों पर ध्यान लगाया, मेरे नेत्रों से अश्रुपात होने लगा और बिना देरी किए भगवान श्रीकृष्ण मेरे हृदय-कमल में प्रकट हो गए।