श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 6: नारद तथा व्यासदेव का संवाद  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  1.6.15 
 
 
तस्मिन्निर्मनुजेऽरण्ये पिप्पलोपस्थ आश्रित: ।
आत्मनात्मानमात्मस्थं यथाश्रुतमचिन्तयम् ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  इसके बाद वीरान जंगल में एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर अपनी बुद्धि से मैंने अपने भीतर ही परमात्मा का ध्यान लगाना शुरू किया, ठीक वैसे ही जैसे मैंने मुक्त आत्माओं से सीखा था।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.