श्रीनारद उवाच
भवतानुदितप्रायं यशो भगवतोऽमलम् ।
येनैवासौ न तुष्येत मन्ये तद्दर्शनं खिलम् ॥ ८ ॥
अनुवाद
श्री नारद बोले: तुमने वास्तव में भगवान की दिव्य और निर्मल महिमा का प्रचार नहीं किया है। वह दर्शन (शास्त्र) व्यर्थ माना जाता है जो प्रभु की दिव्य इंद्रियों को संतुष्ट नहीं कर पाता है।