श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 5: नारद द्वारा व्यासदेव को श्रीमद्भागवत के विषय में आदेश  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  1.5.8 
 
 
श्रीनारद उवाच
भवतानुदितप्रायं यशो भगवतोऽमलम् ।
येनैवासौ न तुष्येत मन्ये तद्दर्शनं खिलम् ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री नारद बोले: तुमने वास्तव में भगवान की दिव्य और निर्मल महिमा का प्रचार नहीं किया है। वह दर्शन (शास्त्र) व्यर्थ माना जाता है जो प्रभु की दिव्य इंद्रियों को संतुष्ट नहीं कर पाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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