श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 5: नारद द्वारा व्यासदेव को श्रीमद्भागवत के विषय में आदेश  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  1.5.35 
 
 
यदत्र क्रियते कर्म भगवत्परितोषणम् ।
ज्ञानं यत्तदधीनं हि भक्तियोगसमन्वितम् ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  इस जीवन में जो कुछ भी कर्म किया जाता है, भगवान् की प्रसन्नता के लिए, उसे भक्तियोग कहा जाता है, या भगवान् के प्रति दिव्य प्रेम भक्ति, और जिसे ज्ञान कहते हैं, वह इसके साथ ही सहगामी कारक बन जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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