जिज्ञासितं सुसम्पन्नमपि ते महदद्भुतम् ।
कृतवान् भारतं यस्त्वं सर्वार्थपरिबृंहितम् ॥ ३ ॥
अनुवाद
तुम्हारे प्रश्न और अध्ययन एक ही तरह के पूर्ण हैं, और इसमें संदेह नहीं कि तुमने एक महान और सुंदर ग्रंथ महाभारत का निर्माण किया है, जिसमें सभी प्रकार के वैदिक फलों (पुरुषार्थों) की विस्तृत व्याख्या है।