श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 5: नारद द्वारा व्यासदेव को श्रीमद्भागवत के विषय में आदेश  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  1.5.3 
 
 
जिज्ञासितं सुसम्पन्नमपि ते महदद्भ‍ुतम् ।
कृतवान् भारतं यस्त्वं सर्वार्थपरिबृंहितम् ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  तुम्हारे प्रश्न और अध्ययन एक ही तरह के पूर्ण हैं, और इसमें संदेह नहीं कि तुमने एक महान और सुंदर ग्रंथ महाभारत का निर्माण किया है, जिसमें सभी प्रकार के वैदिक फलों (पुरुषार्थों) की विस्तृत व्याख्या है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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