उच्छिष्टलेपाननुमोदितो द्विजै:
सकृत्स्म भुञ्जे तदपास्तकिल्बिष: ।
एवं प्रवृत्तस्य विशुद्धचेतस-
स्तद्धर्म एवात्मरुचि: प्रजायते ॥ २५ ॥
अनुवाद
उनकी अनुमति से मैं केवल एक ही बार में उनके बचे हुए भोजन को खाता था और ऐसा करने से मेरे सभी पाप तुरंत दूर हो गए। इस तरह सेवा में जुटे रहने से मेरा हृदय पवित्र हो गया और उस समय वैष्णवों का स्वभाव मेरे लिए अत्यंत आकर्षक हो गया।