श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 5: नारद द्वारा व्यासदेव को श्रीमद्भागवत के विषय में आदेश  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  1.5.21 
 
 
त्वमात्मनात्मानमवेह्यमोघद‍ृक्
परस्य पुंस: परमात्मन: कलाम् ।
अजं प्रजातं जगत: शिवाय त-
न्महानुभावाभ्युदयोऽधिगण्यताम् ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  तुम्हारी दिव्य दृष्टि सम्पूर्ण है। तुम स्वयं ही परमात्मा भगवान को जान सकते हो क्योंकि तुम भगवान के पूर्ण अंश के रूप में विद्यमान हो। यद्यपि तुम जन्मरहित हो, फिर भी तुम सभी लोगों की भलाई के लिए इस पृथ्वी पर प्रकट हुए हो। इसलिए, कृपया परम पुरुष भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का और भी विशद वर्णन करो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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