न वै जनो जातु कथञ्चनाव्रजे-
न्मुकुन्दसेव्यन्यवदङ्ग संसृतिम् ।
स्मरन्मुकुन्दाङ्घ्र्युरपगूहनं पुन-
र्विहातुमिच्छेन्न रसग्रहो जन: ॥ १९ ॥
अनुवाद
ओह प्रिय व्यास, यद्यपि भगवान कृष्ण का भक्त भी कभी-कभी किसी न किसी कारणवश नीचे गिर जाता है, परंतु उसे दूसरों (सकाम कर्मियों आदि) की तरह भव-चक्र में भटकना नहीं पड़ता, क्योंकि जिस व्यक्ति ने भगवान के चरण-कमलों का आस्वादन एक बार किया है, वह उस आनंद को बार-बार स्मरण करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर सकता।