श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 5: नारद द्वारा व्यासदेव को श्रीमद्भागवत के विषय में आदेश  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  1.5.19 
 
 
न वै जनो जातु कथञ्चनाव्रजे-
न्मुकुन्दसेव्यन्यवदङ्ग संसृतिम् ।
स्मरन्मुकुन्दाङ्‌घ्र्युरपगूहनं पुन-
र्विहातुमिच्छेन्न रसग्रहो जन: ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  ओह प्रिय व्यास, यद्यपि भगवान कृष्ण का भक्त भी कभी-कभी किसी न किसी कारणवश नीचे गिर जाता है, परंतु उसे दूसरों (सकाम कर्मियों आदि) की तरह भव-चक्र में भटकना नहीं पड़ता, क्योंकि जिस व्यक्ति ने भगवान के चरण-कमलों का आस्वादन एक बार किया है, वह उस आनंद को बार-बार स्मरण करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर सकता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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