श्रीमद् भागवतम » स्कन्ध 1: सृष्टि » अध्याय 5: नारद द्वारा व्यासदेव को श्रीमद्भागवत के विषय में आदेश » श्लोक 11 |
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| | श्लोक 1.5.11  | तद्वाग्विसर्गो जनताघविप्लवो
यस्मिन् प्रतिश्लोकमबद्धवत्यपि ।
नामान्यनन्तस्य यशोऽङ्कितानि यत्
शृण्वन्ति गायन्ति गृणन्ति साधव: ॥ ११ ॥ | | | अनुवाद | दूसरी ओर, जो साहित्य असीम परमेश्वर के नाम, यश, रूपों और लीलाओं की दिव्य महिमा से भरा है, वह एक अलग ही रचना है। यह दिव्य शब्दों से भरा हुआ है जिसका उद्देश्य इस संसार की गुमराह सभ्यता के अपवित्र जीवन में क्रांति लाना है। ऐसा दिव्य साहित्य, चाहे वह ठीक से न भी रचा हुआ हो, ऐसे पवित्र लोगों द्वारा सुना, गाया और स्वीकार किया जाता है जो नितांत ईमानदार होते हैं। | | दूसरी ओर, जो साहित्य असीम परमेश्वर के नाम, यश, रूपों और लीलाओं की दिव्य महिमा से भरा है, वह एक अलग ही रचना है। यह दिव्य शब्दों से भरा हुआ है जिसका उद्देश्य इस संसार की गुमराह सभ्यता के अपवित्र जीवन में क्रांति लाना है। ऐसा दिव्य साहित्य, चाहे वह ठीक से न भी रचा हुआ हो, ऐसे पवित्र लोगों द्वारा सुना, गाया और स्वीकार किया जाता है जो नितांत ईमानदार होते हैं। |
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