श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 4: श्री नारद का प्राकट्य  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  1.4.33 
 
 
तमभिज्ञाय सहसा प्रत्युत्थायागतं मुनि: ।
पूजयामास विधिवन्नारदं सुरपूजितम् ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री नारद के मंगलकारी आगमन से भगवान व्यासदेव सम्मानपूर्वक उठ खड़े हुए और उन्होंने रचनाकार ब्रह्मा जी के समान ही उनकी पूजा और वंदना की।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध एक के अंतर्गत चौथा अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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