श्रीमद् भागवतम » स्कन्ध 1: सृष्टि » अध्याय 4: श्री नारद का प्राकट्य » श्लोक 32 |
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| | श्लोक 1.4.32  | |  | | तस्यैवं खिलमात्मानं मन्यमानस्य खिद्यत: ।
कृष्णस्य नारदोऽभ्यागादाश्रमं प्रागुदाहृतम् ॥ ३२ ॥ | | अनुवाद | | जैसा कि पहले कहा गया था, सरस्वती नदी के किनारे कृष्णद्वैपायन व्यास की कुटिया में नारद जी तब पहुंचे जब व्यासदेव अपने दोषों के लिए पश्चाताप कर रहे थे। | |
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