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श्रीमद् भागवतम
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अध्याय 4: श्री नारद का प्राकट्य
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श्लोक 31
श्लोक
1.4.31
किं वा भागवता धर्मा न प्रायेण निरूपिता: ।
प्रिया: परमहंसानां त एव ह्यच्युतप्रिया: ॥ ३१ ॥
अनुवाद
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शायद मैंने भगवान की भक्ति के बारे में विशेष रूप से नहीं बताया हो जो सम्पूर्ण जीवों और अच्युत भगवान को प्रिय है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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