श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 4: श्री नारद का प्राकट्य  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  1.4.30 
 
 
तथापि बत मे दैह्यो ह्यात्मा चैवात्मना विभु: ।
असम्पन्न इवाभाति ब्रह्मवर्चस्य सत्तम: ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  यद्यपि मैं वेदों में वर्णित सभी आवश्यकताओं से पूरी तरह से सुसज्जित हूँ, फिर भी मैं अधूरापन महसूस कर रहा हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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