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श्रीमद् भागवतम
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अध्याय 4: श्री नारद का प्राकट्य
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श्लोक 15
श्लोक
1.4.15
स कदाचित्सरस्वत्या उपस्पृश्य जलं शुचि: ।
विविक्त एक आसीन उदिते रविमण्डले ॥ १५ ॥
अनुवाद
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एक बार प्रात:काल सूर्योदय होते ही उन्होंने (व्यासदेव ने) सरस्वती नदी के जल से स्नान किया और तत्पश्चात् समाधि लगाने के लिए एकांत स्थान पर बैठ गए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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