एते चांशकला: पुंस: कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् ।
इन्द्रारिव्याकुलं लोकं मृडयन्ति युगे युगे ॥ २८ ॥
अनुवाद
उपरोक्त सभी अवतार या तो भगवान के पूर्ण अंश या पूर्ण अंश के भाग (कलाएं) हैं, लेकिन श्री कृष्ण तो मूल पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं। जब भी नास्तिकों द्वारा उपद्रव होता है तो वे सभी ग्रहों पर प्रकट होते हैं। भगवान आस्तिकों की रक्षा करने के लिए अवतरित होते हैं।