श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 2: दिव्यता तथा दिव्य सेवा  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  1.2.34 
 
 
भावयत्येष सत्त्वेन लोकान् वै लोकभावन: ।
लीलावतारानुरतो देवतिर्यङ्‍नरादिषु ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार सम्पूर्ण ब्रह्मांडों के स्वामी उन समस्त ग्रहों का पोषण करते हैं जिन पर देवता, मनुष्य और निम्न पशु रहते हैं। वह अवतार लेते हैं और उन लोगों के उद्धार के लिए लीलाएँ करते हैं जो शुद्ध सत्वगुण में स्थित हैं।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध एक के अंतर्गत दूसरा अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.