श्रीमद् भागवतम » स्कन्ध 1: सृष्टि » अध्याय 2: दिव्यता तथा दिव्य सेवा » श्लोक 21 |
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| | श्लोक 1.2.21  | |  | | भिद्यते हृदयग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्वसंशया: ।
क्षीयन्ते चास्य कर्माणि दृष्ट एवात्मनीश्वरे ॥ २१ ॥ | | अनुवाद | | इस प्रकार हृदय की गाँठ खुल जाती है और सभी संशय मिट जाते हैं। जब मनुष्य आत्मा को स्वामी के रूप में देखता है, तो कर्मों का चक्र समाप्त हो जाता है। | |
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