तदा रजस्तमोभावा: कामलोभादयश्च ये ।
चेत एतैरनाविद्धं स्थितं सत्त्वे प्रसीदति ॥ १९ ॥
अनुवाद
जैसे ही हृदय में अडिग और प्रेममय भक्ति स्थापित हो जाती है, प्रकृति के काम, इच्छा और लोभ जैसे रजोगुण और तमोगुण के प्रभाव हृदय से गायब हो जाते हैं। तब भक्त सतोगुण में स्थिर होकर परम सुखी हो जाता है।