अत: पुम्भिर्द्विजश्रेष्ठा वर्णाश्रमविभागश: ।
स्वनुष्ठितस्य धर्मस्य संसिद्धिर्हरितोषणम् ॥ १३ ॥
अनुवाद
अत: हे उत्तम ब्राह्मण, यह निष्कर्ष निकलता है कि वर्ण एवं आश्रम के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करने से जो परम सिद्धि प्राप्त की जा सकती है, वह है भगवान को प्रसन्न करना।