श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 19: शुकदेव गोस्वामी का प्रकट होना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  1.19.5 
 
 
अथो विहायेमममुं च लोकं
विमर्शितौ हेयतया पुरस्तात् ।
कृष्णाङ्‌घ्रिसेवामधिमन्यमान
उपाविशत् प्रायममर्त्यनद्याम् ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  महाराज परीक्षित ने आत्म-साक्षात्कार के अन्य सभी तरीकों को छोड़कर, अपने मन को कृष्णभावनामृत में एकाग्र करने के लिए गंगा-तट पर दृढ़तापूर्वक बैठ गए, क्योंकि कृष्ण की दिव्य प्रेममयी सेवा सबसे बड़ी उपलब्ध है और अन्य सभी तरीकों से श्रेष्ठ है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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