श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 19: शुकदेव गोस्वामी का प्रकट होना  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  1.19.34 
 
 
सान्निध्यात्ते महायोगिन्पातकानि महान्त्यपि ।
सद्यो नश्यन्ति वै पुंसां विष्णोरिव सुरेतरा: ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  जैसे भगवान के व्यक्तित्व के सामने नास्तिक नहीं टिक सकता, वैसे ही हे संत, हे महान योगी, मनुष्य के अभेद्य पाप भी आपकी उपस्थिति में तुरंत मिट जाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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