उस क्षण व्यासदेव के पराक्रमी पुत्र, जो बिना किसी ममता के और अपने हाल से संतुष्ट होकर सम्पूर्ण पृथ्वी पर विचरण करते थे, प्रकट हुए। उनमें किसी भी सामाजिक व्यवस्था या जीवन-स्तर से संबंधित होने का कोई चिह्न नहीं था। उनके चारों ओर स्त्रियाँ और बच्चे थे और उनका पहनावा ऐसा था जैसे सबके द्वारा त्याग कर दिया गया हो।