श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 19: शुकदेव गोस्वामी का प्रकट होना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  1.19.25 
 
 
तत्राभवद्भगवान् व्यासपुत्रो
यद‍ृच्छया गामटमानोऽनपेक्ष: ।
अलक्ष्यलिङ्गो निजलाभतुष्टो
वृतश्च बालैरवधूतवेष: ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  उस क्षण व्यासदेव के पराक्रमी पुत्र, जो बिना किसी ममता के और अपने हाल से संतुष्ट होकर सम्पूर्ण पृथ्वी पर विचरण करते थे, प्रकट हुए। उनमें किसी भी सामाजिक व्यवस्था या जीवन-स्तर से संबंधित होने का कोई चिह्न नहीं था। उनके चारों ओर स्त्रियाँ और बच्चे थे और उनका पहनावा ऐसा था जैसे सबके द्वारा त्याग कर दिया गया हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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