श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 18: ब्राह्मण बालक द्वारा महाराज परीक्षित को शाप  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  1.18.8 
 
 
किं नु बालेषु शूरेण कलिना धीरभीरुणा ।
अप्रमत्त: प्रमत्तेषु यो वृको नृषु वर्तते ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  महाराज परीक्षित ने सोचा कि कम बुद्धि वाले लोग कलि को बहुत शक्तिशाली मान सकते हैं, लेकिन जो लोग आत्म-संयमी हैं, उन्हें किसी भी तरह का डर नहीं है। राजा बाघ के समान शक्तिशाली थे और मूर्ख एवं लापरवाह लोगों की रक्षा करते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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