श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 18: ब्राह्मण बालक द्वारा महाराज परीक्षित को शाप  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  1.18.44 
 
 
तदद्य न: पापमुपैत्यनन्वयं
यन्नष्टनाथस्य वसोर्विलुम्पकात् ।
परस्परं घ्नन्ति शपन्ति वृञ्जते
पशून् स्त्रियोऽर्थान् पुरुदस्यवो जना: ॥ ४४ ॥
 
अनुवाद
 
  राजा की शासन-प्रणाली ख़त्म हो जाने और धूर्तों व चोरों द्वारा लोगों के धन-दौलत को लूट लिए जाने के कारण समाज में भारी उथल-पुथल मचेगी। लोग मारे जाएँगे और घायल किए जाएँगे, पशुओं और महिलाओं को चुरा लिया जाएगा। और इन सभी पापों के लिए ज़िम्मेदार होंगे हम सब।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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