श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 18: ब्राह्मण बालक द्वारा महाराज परीक्षित को शाप  »  श्लोक 24-25
 
 
श्लोक  1.18.24-25 
 
 
एकदा धनुरुद्यम्य विचरन् मृगयां वने ।
मृगाननुगत: श्रान्त: क्षुधितस्तृषितो भृशम् ॥ २४ ॥
जलाशयमचक्षाण: प्रविवेश तमाश्रमम् ।
ददर्श मुनिमासीनं शान्तं मीलितलोचनम् ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  एक समय की बात है, जब महाराज परीक्षित वन में धनुष-बाण से शिकार कर रहे थे। हिरणों का पीछा करते-करते उन्हें बहुत थकान, भूख और प्यास लग गई। पानी की खोज करते हुए वे प्रसिद्ध शमीक ऋषि के आश्रम में पहुँचे, जहाँ उन्होंने देखा कि ऋषि आँखें बंद करके शांति से बैठे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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