श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 18: ब्राह्मण बालक द्वारा महाराज परीक्षित को शाप  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  1.18.2 
 
 
ब्रह्मकोपोत्थिताद् यस्तु तक्षकात्प्राणविप्लवात् ।
न सम्मुमोहोरुभयाद् भगवत्यर्पिताशय: ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  इसके अतिरिक्त, महाराज परीक्षित हर समय भगवान के प्रति समर्पित रहते थे, इसलिए ब्राह्मण बालक के क्रोध के कारण उन्हें काटने वाले उड़ते हुए सांप के डर से वे ना तो घबराये और ना ही अभिभूत हुए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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