स वै महाभागवत: परीक्षिद्
येनापवर्गाख्यमदभ्रबुद्धि: ।
ज्ञानेन वैयासकिशब्दितेन
भेजे खगेन्द्रध्वजपादमूलम् ॥ १६ ॥
अनुवाद
हे सूत गोस्वामी, कृपया उन भगवान् की उन कथाओं का वर्णन करें जिनसे महाराज परीक्षित, जिनकी बुद्धि मोक्ष में केन्द्रित थी, उस भगवान् के चरणकमलों को प्राप्त कर सके जो पक्षिराज गरुड़ के आश्रय हैं। इन कथाओं का उच्चारण व्यास-पुत्र (श्रील शुकेदव) द्वारा हुआ था।