श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 18: ब्राह्मण बालक द्वारा महाराज परीक्षित को शाप  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  1.18.14 
 
 
को नाम तृप्येद् रसवित्कथायां
महत्तमैकान्तपरायणस्य ।
नान्तं गुणानामगुणस्य जग्मु-
र्योगेश्वरा ये भवपाद्ममुख्या: ॥ १४ ॥
 
अनुवाद
 
  पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण (गोविन्द) समस्त महान् जीवों के एक मात्र आश्रय हैं। उनके दिव्य गुणों को शिव और ब्रह्मा जैसे योग शक्तियों के स्वामियों द्वारा भी नहीं मापा जा सकता है। रसास्वादन में पटु होने के बावजूद, क्या कोई उनके बारे में कहानियाँ सुनकर पूरी तरह तृप्त हो सकता है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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