श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 18: ब्राह्मण बालक द्वारा महाराज परीक्षित को शाप  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  1.18.13 
 
 
तुलयाम लवेनापि न स्वर्गं नापुनर्भवम् ।
भगवत्सङ्गिसङ्गस्य मर्त्यानां किमुताशिष: ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान के भक्त के साथ क्षण भर का जुड़ाव, स्वर्गलोक की प्राप्ति या सांसारिक मुक्ति प्राप्ति से भी बढ़कर है, भौतिक संपन्नता से जुड़े सांसारिक सुखों की बात तो छोड़ ही दीजिए, जो कि मृत्यु के अधीन हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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