श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 17: कलि को दण्ड तथा पुरस्कार  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  1.17.41 
 
 
अथैतानि न सेवेत बुभूषु: पुरुष: क्‍वचित् ।
विशेषतो धर्मशीलो राजा लोकपतिर्गुरु: ॥ ४१ ॥
 
अनुवाद
 
  अतएव, विशेष रूप से राजा, धर्म उपदेशक, लोक नेता, ब्राह्मण तथा संन्यासी जो अपनी भलाई चाहते हैं, उन्हें उपर्युक्त चार अधार्मिक कार्यों के सम्पर्क में कभी नहीं आना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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