श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 17: कलि को दण्ड तथा पुरस्कार  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  1.17.36 
 
 
कलिरुवाच
यत्र क्‍व वाथ वत्स्यामि सार्वभौम तवाज्ञया ।
लक्षये तत्र तत्रापि त्वामात्तेषुशरासनम् ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  हे महाराज, चाहे मैं आपकी आज्ञा से कहीं भी रहूँ और किसी भी दिशा में नज़र डालूँ, मुझे आप ही धनुष-बाण लिए दिखाई देंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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