श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 17: कलि को दण्ड तथा पुरस्कार  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  1.17.27 
 
 
शोचत्यश्रुकला साध्वी दुर्भगेवोज्झिता सती ।
अब्रह्मण्या नृपव्याजा: शूद्रा भोक्ष्यन्ति मामिति ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  अब यह पवित्र, बदकिस्मती से भगवान द्वारा छोड़े जाने के कारण, अपने नेत्रों में आंसू भरकर अपने भविष्य पर विलाप कर रही है, क्योंकि अब उसे नीच जाति के आदमियों द्वारा शासित और भोगा जा रहा है जो शासक होने का दिखावा करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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