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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 1: सृष्टि
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अध्याय 17: कलि को दण्ड तथा पुरस्कार
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श्लोक 15
श्लोक
1.17.15
अनाग:स्विह भूतेषु य आगस्कृन्निरङ्कुश: ।
आहर्तास्मि भुजं साक्षादमर्त्यस्यापि साङ्गदम् ॥ १५ ॥
अनुवाद
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जो उद्दंड प्राणी निरपराधियों को सता कर पाप करता है, उसे मैं सीधे उखाड़ फेंकूँगा, चाहे वह स्वर्ग का ही निवासी हो और कवच एवं आभूषणों से सजा हुआ ही क्यों न हो।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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