श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 16: परीक्षित ने कलियुग का सत्कार किस तरह किया  »  श्लोक 32-33
 
 
श्लोक  1.16.32-33 
 
 
ब्रह्मादयो बहुतिथं यदपाङ्गमोक्ष-
कामास्तप: समचरन् भगवत्प्रपन्ना: ।
सा श्री: स्ववासमरविन्दवनं विहाय
यत्पादसौभगमलं भजतेऽनुरक्ता ॥ ३२ ॥
तस्याहमब्जकुलिशाङ्‍कुशकेतुकेतै:
श्रीमत्पदैर्भगवत: समलङ्‍कृताङ्गी ।
त्रीनत्यरोच उपलभ्य ततो विभूतिं
लोकान् स मां व्यसृजदुत्स्मयतीं तदन्ते ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  सौभाग्य की देवी लक्ष्मीजी, जिनकी कृपा के लिए ब्रह्मा जैसे देवता तरसते थे और उनके लिए बार-बार भगवान की शरण में आते थे, वे कमल-वन के अपने निवासस्थान को छोड़कर भी भगवान के चरणकमलों की सेवा में संलग्न थीं। मुझे विशिष्ट शक्तियाँ प्राप्त हुई थीं, जिससे मैं ध्वज, वज्र, अंकुश और कमल के चिह्नों से अलंकृत होकर तीनों लोकों की सम्पत्ति को परास्त कर सकती थी। ये चिह्न भगवान के चरणकमलों के प्रतीक हैं। लेकिन अंत में, जब मैंने महसूस किया कि मैं कितनी भाग्यशाली हूँ, तब भगवान ने मुझे त्याग दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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