श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 16: परीक्षित ने कलियुग का सत्कार किस तरह किया  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  1.16.25 
 
 
धरण्युवाच
भवान् हि वेद तत्सर्वं
यन्मां धर्मानुपृच्छसि ।
चतुर्भिर्वर्तसे येन
पादैर्लोकसुखावहै: ॥ २५॥
 
अनुवाद
 
  (गाय के रूप में) इस पृथ्वी देवी ने (बैल के रूप में) धर्म के साक्षात स्वरूप पुरुष को इस प्रकार उत्तर दिया : हे धर्म, जो कुछ भी आपने मुझसे पूछा है, वह आपको ज्ञात हो जाएगा। मैं आपके उन सभी प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करूँगी। एक समय आप भी अपने चार पाँवों से स्वयं का पालन करते थे और आपने भगवान की कृपा से सम्पूर्ण विश्व में सुख को वृद्धि प्रदान की थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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