श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 16: परीक्षित ने कलियुग का सत्कार किस तरह किया  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  1.16.22 
 
 
किं क्षत्रबन्धून् कलिनोपसृष्टान्
राष्ट्राणि वा तैरवरोपितानि ।
इतस्ततो वाशनपानवास:
स्‍नानव्यवायोन्मुखजीवलोकम् ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  अब तो तथाकथित प्रशासक भी इस कलयुग के असर से भ्रमित और मुग्ध हो गए हैं, जिसकी वजह से उन्होंने राज्य के मामलों को भी अव्यवस्थित और अस्त-व्यस्त कर दिया है। क्या तुम इसके लिए शोक में हो? आजकल आम जनता खानपान, सोने, उठने, बैठने और संभोग करने के नियमों और विधियों का पालन नहीं कर रही है और वे कहीं भी और जैसे चाहें वैसे ही ये सारे काम करने को तत्पर रहते हैं। क्या तुम इस स्थिति के कारण दुखी हो?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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