श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 16: परीक्षित ने कलियुग का सत्कार किस तरह किया  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  1.16.20 
 
 
पादैर्न्यूनं शोचसि मैकपाद-
मात्मानं वा वृषलैर्भोक्ष्यमाणम् ।
आहो सुरादीन् हृतयज्ञभागान्
प्रजा उत स्विन्मघवत्यवर्षति ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  मेरे तीन पाँव नहीं रहे और अब मैं केवल एक पाँव पर खड़ा हूँ। क्या ये इसलिए दुखी हैं कि अब मैं अपनी क्षमताओं को खो बैठा हूँ? या इसलिए कि अब क्रूर मांसाहारी जीव तुम्हारा शोषण करेंगे? या इसलिए कि अब देवताओं को यज्ञों में अपना भाग नहीं मिलेगा, क्योंकि कोई यज्ञ नहीं हो रहे? या फिर इसलिए कि दुर्भिक्ष और सूखे के कारण सभी जीवों को कष्ट हो रहा है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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