श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 16: परीक्षित ने कलियुग का सत्कार किस तरह किया  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  1.16.19 
 
 
धर्म उवाच
कच्चिद्भद्रेऽनामयमात्मनस्ते
विच्छायासि म्‍लायतेषन्मुखेन ।
आलक्षये भवतीमन्तराधिं
दूरे बन्धुं शोचसि कञ्चनाम्ब ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  धर्म रूपी साँड़ ने पूछा : देवी, आप स्वयं स्वस्थ और प्रसन्न तो हैं? आप शोक की छाया से घिरी क्यों हैं? आपके चेहरे से ऐसा लगता है कि आप मुरझा गई हैं। क्या आपको कोई भीतरी रोग हो गया है या आप किसी दूर रहने वाले अपने संबंधी के बारे में सोच रही हैं?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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