धर्म उवाच
कच्चिद्भद्रेऽनामयमात्मनस्ते
विच्छायासि म्लायतेषन्मुखेन ।
आलक्षये भवतीमन्तराधिं
दूरे बन्धुं शोचसि कञ्चनाम्ब ॥ १९ ॥
अनुवाद
धर्म रूपी साँड़ ने पूछा : देवी, आप स्वयं स्वस्थ और प्रसन्न तो हैं? आप शोक की छाया से घिरी क्यों हैं? आपके चेहरे से ऐसा लगता है कि आप मुरझा गई हैं। क्या आपको कोई भीतरी रोग हो गया है या आप किसी दूर रहने वाले अपने संबंधी के बारे में सोच रही हैं?