अर्जुन उवाच
वञ्चितोऽहं महाराज हरिणा बन्धुरूपिणा ।
येन मेऽपहृतं तेजो देवविस्मापनं महत् ॥ ५ ॥
अनुवाद
अर्जुन ने कहा : हे राजन्, भगवान हरि, जो मुझे अपना बेहद करीबी मित्र मानते थे, उन्होंने मुझे तन्हा छोड़ दिया है। इसलिए अब मेरे पास वह अविश्वसनीय ताकत नहीं है जो देवताओं को तक हैरान कर देती थी।