श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 15: पाण्डवों की सामयिक निवृत्ति  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  1.15.21 
 
 
तद्वै धनुस्त इषव: स रथो हयास्ते
सोऽहं रथी नृपतयो यत आनमन्ति ।
सर्वं क्षणेन तदभूदसदीशरिक्तं
भस्मन्हुतं कुहकराद्धमिवोप्तमूष्याम् ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  मेरे पास वही गाण्डीव धनुष है, वही बाण हैं, वही घोड़े हैं और मैं वही अर्जुन हूँ जिसे सारे राजा नमन करते थे। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण की अनुपस्थिति में, वो सब एक पल में ही निष्प्रभावी हो गया है। यह ऐसा है जैसे राख में घी जलाना, जादू की छड़ी से धन इकट्ठा करना या बंजर भूमि में बीज बोना।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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