यद्बान्धव: कुरुबलाब्धिमनन्तपार-
मेको रथेन ततरेऽहमतीर्यसत्त्वम् ।
प्रत्याहृतं बहु धनं च मया परेषां
तेजास्पदं मणिमयं च हृतं शिरोभ्य: ॥ १४ ॥
अनुवाद
कौरवों की सेना सागर के समान थी जिसमें अजेय प्राणियों का वास था, इसलिये उस पार जाना असंभव था। किन्तु उनकी मित्रता के कारण रथ पर सवार होकर मैं उसे पार कर सका। उन्हीं की कृपा से मैं गायों को वापस ला सका और बलपूर्वक राजाओं के मुकुट एकत्रित कर सका जिनमें चमकने वाले रत्न जड़े हुए थे।