श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 14: भगवान् श्रीकृष्ण का अन्तर्धान होना  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  1.14.44 
 
 
कच्चित् प्रेष्ठतमेनाथ हृदयेनात्मबन्धुना ।
शून्योऽस्मि रहितो नित्यं मन्यसे तेऽन्यथा न रुक् ॥ ४४ ॥
 
अनुवाद
 
  या यह कि तुम इसलिए खालीपन महसूस कर रहे हो कि तुमने अपने सबसे घनिष्ठ मित्र भगवान कृष्ण को खो दिया होगा? हे मेरे भाई अर्जुन, तुम इतने हताश होने का मुझे कोई और कारण नहीं दिखता।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध एक के अंतर्गत चौदहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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