कालस्य च गतिं रौद्रां विपर्यस्तर्तुधर्मिण: ।
पापीयसीं नृणां वार्तां क्रोधलोभानृतात्मनाम् ॥ ३ ॥
अनुवाद
उन्होंने देखा कि शाश्वत काल की दिशा बदल गई थी और यह अत्यंत भयावह था। मौसम की नियमितताओं में व्यवधान आ रहे थे। सामान्य लोग अत्यंत लालची, क्रोधी और धोखेबाज हो गए थे। और उन्होंने देखा कि वे आजीविका के ग़लत साधनों को अपना रहे थे।