श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 14: भगवान् श्रीकृष्ण का अन्तर्धान होना  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  1.14.21 
 
 
मन्य एतैर्महोत्पातैर्नूनं भगवत: पदै: ।
अनन्यपुरुषश्रीभिर्हीना भूर्हतसौभगा ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं समझता हूँ कि पृथ्वी पर घटित ये उथल-पुथल विश्व के सौभाग्य में होने वाले बड़े नुकसान के संकेत हैं। भगवान के चरणकमलों के पदचिह्नों के होने के कारण विश्व भाग्यशाली रहा है। किन्तु, ये लक्षण बता रहे हैं कि आगे ऐसा नहीं हो पाएगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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