श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 14: भगवान् श्रीकृष्ण का अन्तर्धान होना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  1.14.20 
 
 
दैवतानि रुदन्तीव स्विद्यन्ति ह्युच्चलन्ति च ।
इमे जनपदा ग्रामा: पुरोद्यानाकराश्रमा: ।
भ्रष्टश्रियो निरानन्दा: किमघं दर्शयन्ति न: ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  मन्दिर में देवतागण रोते, विलाप करते और पसीजते हुए प्रतीत हो रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि वे अब विदा लेने वाले हैं। सभी शहर, गाँव, कस्बे, बगीचे, खानें और आश्रम अब सौंदर्यहीन हो गए हैं और सभी खुशियों से वंचित हो गए हैं। मैं नहीं जानता कि अब हम पर किस प्रकार की विपत्तियाँ आनेवाली हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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