दैवतानि रुदन्तीव स्विद्यन्ति ह्युच्चलन्ति च ।
इमे जनपदा ग्रामा: पुरोद्यानाकराश्रमा: ।
भ्रष्टश्रियो निरानन्दा: किमघं दर्शयन्ति न: ॥ २० ॥
अनुवाद
मन्दिर में देवतागण रोते, विलाप करते और पसीजते हुए प्रतीत हो रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि वे अब विदा लेने वाले हैं। सभी शहर, गाँव, कस्बे, बगीचे, खानें और आश्रम अब सौंदर्यहीन हो गए हैं और सभी खुशियों से वंचित हो गए हैं। मैं नहीं जानता कि अब हम पर किस प्रकार की विपत्तियाँ आनेवाली हैं।